आरती शनिदेव जी की

जय गणेश, गिरजा, सुवन, मंगल करण कृपाल।
दीनन के दुख दूर करि, कीजै नाथ निहाल॥

 
जय-जय श्री शनिदेव प्रभु, सुनहुं विनय महाराज।
करहुं कृपा रक्षा करो, राखहुं जन की लाज॥
आरती श्री शनिदेव तुम्हारी॥

प्रेम विनय से तुमको ध्याऊं, सुधि लो बेगि हमारी॥
आरती श्री शनिदेव तुम्हारी॥
वेद के ज्ञाता, जगत-विधाता तेरा रूप विशाला।
कर्म भोग करवा भक्तों का पाप नाश कर डाला।
यम-यमुना के प्यारे भ्राता, भक्तों के भयहारी।
आरती श्री शनिदेव तुम्हारी॥
 
स्वर्ण सिंहासन आप विराजो, वाहन सात सुहावे।
श्याम भक्त हो, रूप श्याम, नित श्याम ध्वजा फहराये।
बचे न कोई दृष्टि से तेरी, देव-असुर नर-नारी॥
आरती श्री शनिदेव तुम्हारी॥
उड़द, तेल, गुड़, काले तिल का तुमको भोग लगावें।
लौह धातु प्रिय, काला कपड़ा, आंक का गजरा भावे।
त्यागी, तपसी, हठी, यती, क्रोधी सब छबी तिहारी।
आरती श्री शनिदेव तुम्हारी॥
 
शनिवार प्रिय शनि, तेलाभिषेक करावे।
शनिचरणानुरागी मदन तेरा आशीर्वाद नित पावे।
छाया दुलारे, रवि सुत प्यारे, तुझ पे मैं बलिहारी।
आरती श्री शनिदेव तुम्हारी॥